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Friday, 24 August 2018

हक और सच की कमाई

चोरी व ठगी
जब भी हम किसी भीड़ वाले इलाके से पैदल गुजरते हैं तो बार-बार अपनी जेबें, पर्स, बैग आदि को चैक करते हैं।क्योंकि हमें डर रहता है कि कोई हमारे सामान को चुरा न ले।  ये हमारा दुर्भाग्य है कि हमें आम तौर पर अपने चारों ओर विचरने वाले लोग चोर उचक्के ही नजर आते है। हम में से कुछ इस तरह की चोरी या ठगी के शिकार हो चुके होते है या फिर हमने अपने दोस्त - रिश्तेदारों से इसकी कहानियाँ सुनी होती हैं। हम कई बार देश में हुये भ्रस्टाचार या किसी घोटाले के बारे में सुनते हैं, परन्तु हम इस बारे में एक या दो दिन चर्चा करके इसे भूल जाते हैं। ये भ्रस्टाचार या घोटाले भी एक प्रकार की चोरी या ठगी ही है, जो कि  प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से देश की जनता की जेब पर ही पड़ी होती है। 


कई बार तो खुद को बड़ा महान समझने वाले हम लोग स्वयं भी किसी छोटी समझी जाने वाली चोरी या ठगी में शामिल होते हैं परन्तु किसी की नज़रों में आने पर हमारा जवाब होता है कि इससे क्या फर्क पड़ता है ये तो छोटी सी बात है। लेकिन ऐसा नहीं है, चोरी छोटी हो या बड़ी, चोरी ही कहलाती है।  कुछ लोग टैक्स की चोरी, किसी प्रकार के चलान से बचने के लिए या कोई और काम कराने के लिए रिश्वत देना, गलत तरीके से पैसा कमाना  आदि भी चोरी या हराम की कमाई ही गिनी जाती है। 

आज के इस लेख में मैं "हक और सच की कमाई" के बारे में बात करूँगा जो कि हमें जीवन के सही राह पर चलकर ही कमा सकते  हैं । 

सबसे पहली बात तो यह हमेशा याद रखें कि "हक और सच की कमाई से ही परमात्मा खुश होता है। "

यदि आप इलाज के लिए किसी अच्छे डॉक्टर के पास जाते हैं और उसके इलाज से आप ठीक होते हैं परन्तु वह आपसे मोटी फीस वसूल रहा है तो वो चोरी नहीं है वो अपने हक़ के पैसे माँग रहा होता है। क्योकि उस डॉक्टर के हाथ में वो गुण है जो आपको लाभ दे रहा है इसीलिए आप अगली बार भी उसी डॉक्टर के पास जाते हैं। वहीं दूसरी ओर दूसरा डॉक्टर आपसे थोड़ी कम फीस लेता है पर उसकी दी हुई दवा से आपको कोई लाभ नहीं मिलता, फिर भी वह आपसे बार-बार फीस वसूलता है जबकि उसके हाथ में वह गुण ही नहीं है जिसके लिए आप उसे फीस दे रहे हैं। तो यह ठगी है। 

इसी प्रकार यदि कोई कथावाचक या प्रचारक जीवन को सही रह पर लाने के लिए अच्छे उपदेश देता है और अपने गुजर बसर के लिए कुछ धन भी लेता है तो इसमें कोई बुराई नहीं। यह धन उसकी हक़ और सच की कमाई है। लेकिन यदि वह किसी परिवार की मदद करने के नाम पर लोगों से पैसे ऐंठता है और उन पैसों को अपनी जेब में डालता है या कुछ अंश ही उस परिवार को देता है, तो यह भी चोरी या ठगी है। 

आज के समय में तो कुछ लोगों ने भगवान् को भी कमाई का साधन बना लिया है। हम अपनी श्रद्धा से अपने धार्मिक स्थलों पर धन या अन्य साधनों का चढ़ावा चढ़ाते हैं लेकिन वो चढ़ावा किस काम में उपयोग किया गया हम कभी इस बात की और ध्यान नहीं देते।  कुछ धार्मिक स्थलों पर लंगर की व्यवस्था या कोई और चिकित्सीय सुविधाएं इत्यादि निशुल्क प्रदान की जाती हैं, इन्हे छोड़कर बाकि की कमाई का क्या होता है कोई नहीं पूछता। यह सब भी तो भगवान् के नाम पर ठगी है। मेरे विचार में यदि आप भगवान् को खुश करना चाहते हो तो धार्मिक स्थलों में दान देने की बजाय किसी गरीब की मदद करें। जैसे किसी गरीब लड़की की शादी करवाना, गरीब बच्चों की पढाई का खर्च उठाना या अपने पास उपलभ्ध साधनो द्वारा किसी की कोई मदद करना आदि। 

यदि हम अपनी हक की कमाई करेंगे तो हमें नींद भी सुकून भरी आएगी पर जब हम बेईमानी की कमाई इक्कठी करते हैं तो हमारा मन हमेशा डर और चिंता से ही घिरा रहता है। और इसी चिंता में कब हम किसी जानलेवा रोग की चपेट में आ जाते हैं हमें पता भी नहीं चलता।  दुनिया के सभी अमीर लोगों में से कुछ प्रतिशत लोगो को छोड़कर बाकि सभी किसी न किसी तरीके से गलत कामो में पड़ कर या कोई गलत तरीका आजमाकर ही अमीर बने होते है। आप ध्यान दे तो ज्यादातर इस तरह के लोग या उनका परिवार किसी न किसी गंभीर बीमारी का शिकार मिलता है।  किसी गरीब और सच्चे इन्सान की बजाय एक बेईमान और अमीर व्यक्ति अक्सर ब्लडप्रेशर, शुगर, कैंसर और ब्रेनट्यूमर आदि बीमारियों से घिरा मिलेगा।






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